आखिर सूर्य पर पहुँचना कितना मुश्किल?

पहली नज़र में ऐसा लगता है की सूर्य पर पहुँचना बहुत की आसन होना चाहिए क्योंकि सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल हमें हमेशा अपनी ओर आकर्षित करता रहता है

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आखिर सूर्य पर पहुँचना कितना मुश्किल?

ऊर्जा की ज़रुरत बढ़ने के साथ साथ परमाणु अपशिष्ट यानि Nuclear waste बढ़ता ही जा रहा है, यह लाखों सालों तक रेडियो एक्टिव रहता है और इसे ख़तम करना लगभग असंभव है.

हमारा सूर्य भी एक फ्यूज़न रिएक्टर ही है. क्यों न हम सारा कचरा राकेट में लोड कर के सूरज पर फेक दें?

हम हर साल लगभग 100,000 मीट्रिक टन परमाणु कचरा उत्पन्न करते हैं. और इसे ज़मीन में दफन करते हैं ताकि ये जीवन को नुक्सान न पंहुचा सके.पर हर साल बढ़ते कचरे से निपटना और मुश्किल होता जा रहा है.

इससे निपटने का एक तरीका ये भी हो सकता है कि हम इस कचरे को रॉकेट में लोड कर के सूरज पर फेक दें.

पर ये इतना आसान भी नहीं है.

कभी कभी रॉकेट, लांच के समय ही फट जाते हैं, अगर हमने यह परमाणु अपशिष्ट रॉकेट में भरा और कहीं रॉकेट लांच के समय या पृथ्वी के वातावरण में ही फट गया तो सारे किये धरे पर पानी फिर जायेगा. और सारा कचरा पृथ्वी पर फैल जायेगा. जो कि परमाणु बम जैसा ही होगा.

पर बड़ी वजह तो ये है कि सूरज तक पहुँचना बहुत, बहुत … बहुत मुश्किल है.

पहली नज़र में ऐसा लगता है की सूर्य पर पहुँचना बहुत की आसन होना चाहिए क्योंकि सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल हमें हमेशा अपनी ओर आकर्षित करता रहता है. पर पृथ्वी अपनी कक्षा में भी बहुत तेज़ी से चक्कर लगाती है. जिसकी वजह से हम सूरज की ओर गिरने पर उससे टकराते नहीं हैं बल्कि उसका चक्कर लगाने लगते हैं.

सूर्य से टकराने के लिए... हमें अपनी कक्षीय गति (Orbital speed) धीमी करनी होगी ताकि हम सूर्य की तरफ जा सकें.

पृथ्वी और उस के ऊपर की हर चीज़ लगभग 30 KM/s की गति से सूर्य का चक्कर लगाती है. सूर्य का चक्कर लगाने से रुकने के लिए हमें 30 KM/s पृथ्वी की उलटी दिशा में जाना पड़ेगा. तब ही हम सूर्य की तरफ जा सकते हैं. और हमें अपनी गति को एकदम शून्य करना पड़ेगा क्योंकि थोड़ी सी भी गति हमें सूर्य तक नहीं पहुचने देगी और हम सूर्य का चक्कर काटने लगेंगे.

30 KM/s काफी तेज़ गति है…. पर कितनी तेज़ ?

सौर मंडल से बहार जाने के लिए हमे पृथ्वी की गति की दिशा में लगभग 11 KM/s की गति से आगे बढ़ना होगा किन्तु  सूर्य तक जाने के लिए 30 KM/s की गति से पृथ्वी की उलटी दिशा में जाना होगा.

1 मिनिट रुकिए और सोचिये….
अन्य तारों तक पहुचने के लिए कम एक्सेलरेशन चाहिए और हमारे तारे (सूर्य) तक पहुचने के लिए अधिक .!!!

अजीब है न !?

क्योंकि किसी ऑब्जेक्ट के जितना पास जायेंगे गुरुत्वाकर्षण बल उतना ही अधिक होता जाता है. इसलिए जितनी छोटी चक्कर लगाने की कक्षा होगी उतनी तेज ऑर्बिटल स्पीड होगी.

उदाहरण के लिए बुध गृह ही कक्षीय गति पृथ्वी से लगभग डेढ़ गुना (48 KM/s) है. जबकि नेपच्युन काफी कम (5.43 km/s) गति से सूर्य का चक्कर लगता है.

और इसका मतलब है पृथ्वी की अपेक्षा कि बुध से सूर्य पर पहुँचना बहुत मुश्किल है और नेप्च्यून से काफी आसान.

क्योंकि आप करीब हो इसलिए आपको ज्यादा तेज़ गति से एक्सलरेट होना पड़ेगा.

असल में अगर आप सूर्य पर पहुँचना चाहते हैं तो आपके लिए आसान होगा कि पहले आप सौर मंडल में बाहर की तरफ जाएँ जहा ऑर्बिटल स्पीड काफी कम होगी. फिर वहां अपनी ऑर्बिटल स्पीड को शून्य कर के, फिर सूर्य की तरफ दुबकी लगायें.

अब ये बताइए अगर हम सूर्य पर पहुँच गए तो फिर वह दिन आखिर कितना लम्बा होगा ?