दिल टूटे तो दर्द क्यों होता है ?

हम सभी ठुकराए जाने और दिल टूटने से वाक़िफ़ है चाहे हमारा दिल किसी ने तोड़ा हो या हमने किसी और का. दिल टूटने या ठुकराए जाने पर जो दर्द महसूस होता है, वह शारीरिक दर्द से कम नहीं होता.

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दिल टूटे तो दर्द क्यों होता है ?
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जब कभी भी आप को कोई शारीरिक चोट लगती है या शरीर का कोई हिस्सा कट जाता है तो जो दर्द महसूस होता है वह मस्तिस्क के Anterior Cingulate Cortex हिस्से में होता है. और जब आप ठुकराए जाते हैं या आपका दिल टूटता है तब भी दिमाग के इसी हिस्से में प्रतिक्रिया होती है. तो हो सकता है की शारीरिक दर्द और भावनात्मक दर्द दोनों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है जैसा हमें पहले लगता था.

ज़रा सोचिये हम कैसे अपने भावनात्मक दर्द को बयां करते हैं..

“उसने मेरे दिल के टुकडे-टुकडे कर दिए”

“मेरा दिल ज़ख़्मी को गया है”

यह दर्शाता है की हमारे लिए मानसिक दर्द भी शारीरिक दर्द जैसा ही होता है. और वैज्ञानिकों के द्वारा की गई रिसर्च बताती है की हम मानसिक दर्द के स्थान पर शारीरिक दर्द को चुनना पसंद करते हैं.

किंतु प्रश्न यह है की ये दो अलग तरह के दर्द हमारे दिमाग को एक जैसे क्यों महसूस होते हैं ?

यह तो साफ़ है कि हमारा शरीर आने वाले खतरे और नुक्सान से बचने के लिए शारीरिक दर्द का सहारा लेता है (जैसे किसी गरम वस्तु को छूने पर दर्द होता है ताकि हम उस वस्तु से दूर हो जाएँ)

किंतु जिंदगी के विकास के नज़रिए से, जो कुछ भी हमारी प्रजाति के विकास और स्वस्थ्य के लिए लाभकारी होता है वह हमारे साथ बना रहता है.

प्रेम, गठजोड़ और मित्रता की शुरुआत कई प्रजातिओं के बचे रहने के लिए ज़रूरी होता गया. उनमें हम इंसान भी शामिल हैं. आप मेरी रक्षा करो, मैं आपकी रक्षा करूँगा.

जैसे हम ध्यान रखते हो की किसी गरम चीज़ से जलें नहीं. वैसे ही हम यह भी चाहते हैं की ज़िंदगी के इस सफ़र में हम अकेले न रह जाएँ. हम चाहते हैं कि हम भी अपने परिवार, दोस्तों और प्रियजनों के साथ रहें. इसलिए अप्रिय शारीरिक और मानसिक घटनाओं के होने पर जो दर्द या तकलीफ़ होती है वो आगे इन घटनाओ के होने की सम्भावना को कम करती है. जिस प्रकार दूध से जलने पर दर्द होता है और इसका जला छांछ भी फूक-फूक कर पीता है, वैसे ही अगर दिल टूट जाये या कोई अपना बिछड़े तो दर्द होता है. और हम कोशिश करते हैं की कैसे भी कर के उसे जाने से रोक लें या आगे से कोई ऐसी गलत हम से न हो.

जिंदा रहने और बच्चे पैदा करने की सम्भावना और बढ़ जाती है अगर आप अकेले न हों. और यह हमारी प्रजाति की सुरक्षा के लिए बहुत ज़रूरी है.

ऐसा देखा गया है की जब प्राइमेट्स को उनके प्रियजनों से दूर कर देते हैं तो उनके मस्तिष्क में cortisol बढ़ जाती है और Norepinephrine की मात्र कम होने लगती है. जिससे उनमे डिप्रेशन और एंग्जायटी बढ़ जाती है. इंसानों में भी ब्रेक-अप, किसी अपने को खोना या समूह से बहिस्कृत होने पर ऐसे ही प्रतिक्रियायें होती हैं. और इसका दर्द, शारीरिक दर्द जैसा ही होता है.

तो...क्या हम मानसिक दर्द को कम कर सकते हैं?

शोध दर्शाते हैं की सामाजिक सहायता और सहभागिता भावनात्मक दर्द को कम कर सकते हैं. ऐसे व्यक्ति जो अकेले रहते हैं या जिन्हें अपने दोस्तों और प्रियजनों से सामाजिक साथ नहीं मिलता उन्हें इस तकलीफ से उबरने में काफी दिक्कत हो सकती है.

अगर आपका दिल टूटा है या किसी को आपने खोया है, तो दोस्तों और परिजनों के साथ समय बिताइये. मुझे पता है यह मुश्किल है पर फिर भी.

और अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हो जो ऐसे समय से गुज़र रहा है तो उसके साथ समय बिताइये.

क्योंकि हम इंसान, हम बस किसी का साथ चाहते हैं.